बुधवार, 9 नवंबर 2011

मुद्दे से भटकाने की चल रही साजिश ....

जन-लोकपाल या सशक्त लोकपाल से भ्रष्टाचार 60 फीसदी खत्म होगा (अन्ना के अनुसार) और बाकी भक्तों के अनुसार समूचे रोगों की जड़ मात्र एक क़ानून बना देना है इसलिए "इसके लिए कुछ करेगा" की तर्ज पर पागलपन सवार है और विवेक खोते जा रहे लोगों  में धुन सवार हो गया है. यह सही है पहले से मौजूद क़ानून लचर हैं लेकिन यह भी सही है कि इन्हीं कानूनों को किसी ने इस्तेमाल करने की कोशिश की तो येदियुरप्पा साहब जेल की हवा खा रहे हैं. कितना भी सख्त क़ानून बना दिया जाए अगर उसे अमली जामा पहनाने की नीयत नहीं है तो उसका औचित्य ही क्या है.
अन्ना और अन्ना टीम जन -लोकपाल के लिए उद्वेलित है, उनके साथ देश का बहुत बड़ा जन--मानस है. लेकिन इस आन्दोलन के उन्माद का असर लोगों को मूल मुद्दे से भटकाने वाला ही साबित हो रहा है, पिछले दिनों वित्त आयोग नई भार्तियों पर रोक लगाने की सिफारिश कर दी. पेट्रोल की तरह डीजल को नियंत्रण मुक्त करने की कवायद चल रही है. सारे दाम बाजार के भूखे भेड़ियों के हवाले करने का उद्घोष प्रधानमंत्री स्वयं कर रहे हैं. किसानों, मेहनतकशों की समस्याएं अपनी जगह हैं. श्रम कानूनों को ख़त्म करने की वार्निंग पीएम खुलेआम दे रहे हैं. समाज का हर वर्ग परेशान है. लेकिन ऐसा लग रहा है कि नौकरी, रोटी नहीं सिर्फ लोकपाल चाहिए.
अन्ना टीम रामलीला मैदान से फारिग होकर नेपथ्य में जा रही थी क्योकि शीत सत्र से पहले कुछ करने का बचा नहीं था. लेकिन देवदूत दिग्विजय सिंह जी प्रगट हुए और अपने जलती वाणी से मीडिया में पूरे तामझाम के साथ टीम अन्ना सहित लोकपाल को जिंदा कर दिया. देश में लोग व्यस्त हैं किरण बेदी, केजरीवाल सही है या दिग्विजय. बहसें चल रही हैं. लोकपाल क्यों और उनके दुश्मन कौन?
कांग्रेस को बड़ा फायदा मिल रहा है कि देश का पढ़ा लिखा वर्ग बाकी सबको समझा रहा है कि लोकपाल आयेगा और आपको मुक्ति-इश्वर-धन-धर्म सब मिल जाएगा. दरअसल, एक बड़ा षड़यंत्र चल रहा है जनता के खिलाफ. इसमें कारपोरेट, मीडिया, सताधारी दल, मुख्य विपक्षी सहित टीम अन्ना भी शामिल दिख रहा है.

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