सोमवार, 21 नवंबर 2011

विषमता का दंश झेलता अमेरिका

फरीद जकरिया, वरिष्ठ अमेरिकी पत्रकार
जिस बात को हम सभी महसूस करते रहे हैं, वाशिंगटन पोस्ट-एबीसी न्यूज के एक सर्वे ने उसे तार्किकता के साथ सामने रखा है कि अपने देश में अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई को लेकर ज्यादातर अमेरिकी उद्विग्न हैं, और चिंतित भी। जाहिर है, जल्दी ही इस मुद्दे पर पार्टी लाइन के आधार पर हमेशा की तरह दो खेमे बन गए। उदारवादी खेमा जहां अमीरी और गरीबी के इस फासले को कम करने के लिए सरकार से ठोस कदम उठाने की अपील करने लगा है, तो वहीं दूसरी तरफ परंपरावादी गुट ऐसे किन्हीं कदमों की मुखालफत के साथ सामने आ गया है। अलबत्ता, कुल मिलाकर एक बड़े बहुमत ने सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। लेकिन आय में बढ़ते अंतर से भी कहीं अहम इस मसले पर दोनों पक्षों को जिस बात पर सहमत होना पड़ेगा, वह है- सामाजिक सशक्तीकरण का महत्व। इंडियाना के गवर्नर मिक डैनियल (रिपब्लिकन) ने सही पहचाना है कि ‘अपवर्ड मोबलिटी यानी नीचे से ऊपर की ओर की ओर उदय अमेरिकी भरोसे का मुख्य बिंदु रहा है।’ कुछ अमेरिकी अब भी मानते हैं कि हमारे देश में सब कुछ अच्छा हो रहा है। हेरिटेज फाउंडेशन के जलसे के दौरान पिछले महीने दिए गए अपने भाषण में अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य पॉल रेयान ने कहा था, ‘अमेरिका में वर्ग की कोई तय परिभाषा नहीं है। हम एक सशक्त गतिशील समाज हैं, जिसमें विभिन्न आय समूहों के बीच कई तरह के आंदोलन चलते रहते हैं।’ रेयान ने अमेरिकी सामाजिक सशक्तीकरण की तुलना यूरोप की सामाजिक तरक्की से करते हुए कहा था, ‘यूरोप के बड़े कल्याणकारी देशों ने पारंपरिक कुलीन तंत्र का स्थान ले लिया है और उनमें लंबे समय से बेरोजगार रहे तबके को निचले दर्जे की श्रेणी में कैद कर दिया गया है।’ वास्तव में, पिछले दशक में अमेरिका में ऐसी कई बातें हुई हैं, जो ये बताती हैं कि इस देश में सामाजिक सशक्तीकरण की प्रक्रिया रुक-सी गई है। पिछले दिनों ही प्रसिद्ध पत्रिका टाइम ने आवरण कथा प्रकाशित की थी, जिसका शीर्षक था, ‘क्या आप अब भी अमेरिका आ सकते हैं?’ इसका जवाब अनेक अकादमिक अध्ययनों से पता चलता है, जो ‘नहीं’ में है। और यह ‘नहीं’ यूरोप की तुलना में कहीं अधिक है। इस संदर्भ में ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन ऐंड डेवलपमेंट नामक संगठन ने पिछले साल एक व्यापक तुलनात्मक अध्ययन किया था। इसने अपने निष्कर्ष में पाया कि मिक डैनियल जिसे ‘नीचे से ऊपर उठने’ के रूप में परिभाषित करते हैं, यानी सामाजिक सशक्तीकरण की प्रक्रिया अमेरिका में यूरोप के ज्यादातर बड़े देशों के मुकाबले कहीं धीमी है। इस मामले में जर्मनी, स्वीडन, नीदरलैंड और डेनमार्क का प्रदर्शन कहीं बेहतर है। साल 2006 में इंस्टिट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ लेबर द्वारा जर्मनी में कराए गए एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि अमेरिका ऊपर की तरफ सशक्तीकरण के मामले में कमजोर प्रतीत हो रहा है। वर्ष 2010 में ही इकोनॉमिक मोबिलिटी प्रोजेक्ट ने अपने अध्ययन में पाया कि लगभग तमाम पहलुओं से अमेरिका का सामाजिक-आर्थिक वर्गीय ढांचा कनाडा से अधिक सख्त है। अमेरिका के धनाढ्य पिताओं के एक चौथाई से भी अधिक बेटे अब भी वहां सर्वाधिक कमा रहे अमेरिकी युवकों की दस फीसदी हैं, जबकि कनाडा में इससे बेहतर हालात हैं। इसी तरह निचले आय वर्ग के अमेरिकी पिताओं के युवा बेटे अब भी निचले आय वर्ग में बने हुए हैं, जबकि इस मामले में भी कनाडा की स्थिति अच्छी है। इन सभी साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद ब्रूकिंग इंस्टिट्यूट के फेलो स्कॉट विनशिप ने पिछले दिनों नेशनल रिव्यू में लिखा कि ‘कम से कम एक मामले में तो अमेरिकी सशक्तीकरण असाधारण है।.. और वह यह कि नीचे से ऊपर की ओर सशक्तीकरण की जो अपनी रफ्तार रही है, हम उस पर अड़े हुए हैं।’ अमेरिकी समाज की ये हकीकतें चौंकाने वाली नहीं होनी चाहिए। अपने वर्गों में बंटे समाजों के भूत से परेशान यूरोपीय देशों ने सबको समान अवसर मुहैया कराने के लिए काफी निवेश किया। उन्होंने अपने देश में बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण से संबंधित प्रभावशाली कार्यक्रम लागू किए और अमेरिका के मुकाबले उनकी सार्वजनिक शिक्षा की स्थिति भी कहीं बेहतर है। परिणामस्वरूप, यूरोपीय मुल्कों में गरीब बच्चे भी अमीर बच्चों के साथ बराबरी की प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हैं। अमेरिका में यदि आप गुरबत के मारे किसी परिवार में पैदा होते हैं, तो पूरी आशंका है कि आपका बचपन कुपोषण और खराब शिक्षा का शिकार हो जाए। अमेरिका की लोक-कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का सबसे खराब पहलू यह है कि यह गरीबों पर काफी कम खर्च करता है, क्योंकि वे बड़ी तादाद में वोट नहीं करते। अमेरिकी अर्थव्यवस्था गरीबों के बजाय मध्यवर्ग पर अधिक ध्यान देती है। परिणाम सामने है। अपॉरच्यूनिटी नेशन के साथ इंटरव्यू में एक छात्र ने काफी सारगर्भित बात कही, ‘आपकी पैदाइश का पता देने वाला कोड आपकी नियति का नियंता नहीं होना चाहिए, लेकिन दुर्योग से अमेरिका में ऐसा ही होता है।’ आय में असमानता की चुनौती का मुकाबला कोई आसान काम नहीं है। अमीरों पर अधिक टैक्स लगाने से बुनियादी स्तर पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि यह असमानता भूमंडलीकरण, प्रौद्योगिकी और शिक्षा व्यवस्था के कारण बढ़ रही है। उदाहरण के लिए, आप अमेरिका में 1990 के आय के बंटवारे के स्तरों को देख लीजिए, आप पाएंगे कि जितने हजारों अरब डॉलर हर साल तब वितरित होते थे, वे आज के किसी भी बड़े टैक्स प्रस्ताव से कहीं अधिक होते थे। हमें यह सीखना होगा कि किस तरह से सामाजिक सशक्तीकरण को मजबूत किया जाए। इसके लिए हम उन मुल्कों से सबक ले सकते हैं, जो इस मामले में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। खासकर उत्तरी यूरोप के देश और कनाडा से काफी कुछ सीखा जा सकता है। सामाजिक परिवर्तन यानी गरीबों के सशक्तीकरण के उपाय बिल्कुल स्पष्ट हैं। मसलन, बच्चों के लिए भरपूर पोषण और बेहतर स्वास्थ्य सुविधा, स्तरीय सार्वजनिक शिक्षा, उच्च स्तर का बुनियादी ढांचा, जो सभी क्षेत्रों के समस्त लोगों की पहुंच बाजार के अवसरों तक बना सके और एक लचीली व प्रतिस्पर्धी मुक्त अर्थव्यवस्था। यही चीजें अमेरिका और उसके बाशिंदों को अब आगे ले जाएंगी।

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