शनिवार, 12 नवंबर 2011

नीति यानी आचरण

अक्षर यात्रा की कक्षा में न वर्ण पर चर्चा जारी रखते हुए आचार्य पाटल ने कहा- "नैषध" के अनुसार निर्देशन, दिग्दर्शन, प्रबंध, व्यवहार और कार्यक्रम को नीति कहते हैं।
एक शिष्य ने पूछा- गुरूजी, हमें तो नीति के अनुसार चलने की सीख देते हुए दादाजी कहते रहते हैं कि जो आदमी नीति के रास्ते चलता है उसकी हमेशा जीत होती है।
आचार्य ने कहा- तुम ठीक कह रहे हो वत्स, कालिदास ने आचरण, चाल चलन, व्यवहार, औचित्य, शालीनता और बुद्धिमत्ता के लिए भी नीति शब्द का प्रयोग किया है। "मातंगलीला" योजना, उपाय और युक्ति के अर्थ में नीति शब्द का व्यवहार करती है।
आचार्य ने बताया- "शिशुपाल वध" ने राजनय, राजनीतिशास्त्र और कूटनीति के लिए नीति शब्द काम में लिया है। "भगवद्गीता" आत्म-उदय के अर्थ में नीति शब्द का व्यवहार करती है। अवाप्ति, अधिग्रहण, प्रदान और प्रस्तुत करने के अर्थ में भी नीति शब्द का व्यवहार होता है। सम्बन्ध और सहारे के लिए भी नीति शब्द प्रयुक्त किया जाता है। नीतिकार, राजनीतिज्ञ और सभ्य व्यक्ति के लिए नीतिज्ञ, नीतिकुशल, नीतिष्ण और नीतिविद् शब्द का उपयोग होता है।
आचार्य ने बताया- दूरदर्शी और बुद्धिमान को नीति विशारद कहते हैं। बृहस्पति की गाडी को नीतिघोष कहा जाता है। किसी भूल या अपराध को नीतिदोष कहते हैं। षडयंत्र के मूल स्रोत को नीतिबीज कहा गया है। विष्णु शर्मा ने "पंचतंत्र" में इसी अर्थ में नीति शब्द को ग्रहण किया है। नीतिशास्त्र या राजनीति के नियमों के उल्लंघन को नीति- व्यतिक्रम कहा जाता है। चाल चलन की गलती के अर्थ में भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। लोक और शास्त्र में चार प्रकार की नीतियों का वर्णन हुआ है- साम, दाम, दंड और भेद।
आचार्य ने बताया- "ज्योतिर्विज्ञान" में चंद्रमा को नीध्र कहा है। "एकाक्षरी कोश" के अनुसार रेवती नक्षत्र का एक नाम भी नीध्र है। छत का किनारा, जंगल और पहिए की परिधि अथवा घेरे को भी नीध्र कहा जाता है। "रघुवंश" में राजाओं के एक कुल को नीप कहा गया है। "मृच्छकटिकम्" के अनुसार बरसात में फूलने वाले कदम्ब के वृक्ष को नीप कहते हैं। अशोक वृक्ष के लिए भी कालिदास नीप शब्द काम में लेते हैं।
आचार्य ने बताया- "भामिनीविलास" पानी, रस और आसव के अर्थ में नीर शब्द का उपयोग करता है। "शिशुपाल वध" में नीरद को बादल का एक नाम कहा है। समुद्र को नीर निधि कहते हैं। "एकाक्षरी कोश" के अनुसार कमल का एक नाम नीररूह है।
आचार्य ने बताया- प्राचीन काल में सैन्य धर्म के अनुसार आश्विन महीने में एक पर्व मनाया जाता था इस पर्व को नीराजन कहा जाता था। इसमें राजा, पुरोहित और मंत्रीगण युद्ध में जाने से पहले वेद मंत्रों द्वारा अपने शस्त्रास्त्रों को चमकाते थे। इस पर्व को मनाने के पीछे युद्ध में विजय की कामना था। देव प्रतिमा के सामने प्रज्ज्वलित दीपक को आरती के रू प में प्रस्तुत करना भी नीराजन कहा जाता है।
आचार्य ने बताया- "रामायण" के अनुसार राम की सेना का एक वानर नायक नील था। नल और नील ने ही सेतुबंध बनाया था। "एकाक्षरी कोश" में एक पर्वत श्ृंखला का नाम नील अथवा नीलगिरि है। काला नमक, नीला थोथा अथवा जहर को भी नील कहते हैं। नीलांजन सुरमे का एक नाम है।
आचार्य बोले- बिजली का नाम नीलांजना है। "महापुराण" में नीलांजना एक ऎसी अप्सरा का नाम है जो बिजली की गति से नृत्य करती थी। नीलांजना ने आदि तीर्थüकर ऋषभदेव के सामने मनोहारी नृत्य किया। नृत्य करते-करते ही उसका प्राणांत हो गया। देवमाया ने ऎसा चमत्कार किया कि ठीक वैसी ही अप्सरा उसकी जगह नृत्य करने लगी। दर्शकों ने क्षण भर के लिए नीलांजना के गायब हो जाने को अभिनय का हिस्सा माना। रंग में भंग डाले बिना देवमाया ने नृत्य जारी रखा। ऋषभदेव इस देवमाया को समझ गए और इस घटना से उनकी भावदशा बदल गई और वे राग से विराग पथ पर बढ गए। नीलाम्बुज और नीलोपल्ल नीलकमल के नाम हैं। काले बादल को नीलाभ्र अथवा नीलांबर कहते हैं। नीलांबर का शाब्दिक अर्थ है- गहरे नीले रंगों के वस्त्रों से सुसज्जित। शनिग्रह को नीलक कहते हैं। बलराम का एक विशेषण भी नीलक है।
आचार्य बोले- प्रभातकाल यानी पौ फटने के समय को नीलारूण कहते हैं। "मातंगलीला" में मोर का एक नाम नीलकंठ है। "एकाक्षरी कोश" में शिव के विशेषण के रूप में भी नीलकंठ शब्द का उपयोग हुआ है। खंजन को भी नीलकंठ कहा जाता है। गरूड और छुहारे के पेड को नीलच्छद कहते हैं। नीलतरू नारियल के पेड का नाम है। घने अंधेरे को नीलपंक कहते हैं। "पंचतंत्र" में नील पटल अंधेरे के आवरण को कहा गया है। बाज को नीलपिच्छ कहते हैं। चंद्रमा और बादल का नाम नीलाभ है।
आचार्य ने बताया- "ऋतुसंहार" घोर अंधकार या अंधेरे की गहन काली रेखा को नील रात्रि अथवा नीलांधकार कहा है। "एकाक्षरी कोश" में शिव का एक विशेषण नीललोहित है और नीलम को नीलमणि कहा जाता है।
(राजस्थान पत्रिका से साभार)

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