शनिवार, 3 दिसंबर 2011

अमेरिकी रिपोर्ट के हवाले से माकपा ने कहा- अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह होगा वालमार्ट

खुदरा व्यापार क्षेत्र की अमेरिका की विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनी वालमार्ट की सफलता का मतलब है कर्मचारियों के वेतन एवं अन्य लाभों में कटौती, उनके श्रमिक अधिकारों का खुला एवं सतत उल्लंघन और देश भर के आम लोगों के जीवन.स्तर के लिए गंभीर चुनौतियां. कामगारों एवं उनके परिवारों के हितों की कीमत पर वालमार्ट की व्यापारिक सफलता सुनिश्चित करने की कोई जरूरत नहीं है. कारपोरेट मुनाफे की ऐसी संकुचित दृष्टि अंतत: हमारी अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह साबित होगी. यह निष्कर्ष बहुब्रांड खुदरा व्यापार में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति देने के मनमोहन सिंह सरकार के फैसले का विरोध कर रहे विपक्षी दलों तथा सरकार की कुछ घटक पार्टियों के वक्तव्यों का अंश नहीं है, बल्कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने अमेरिकी कांग्रेस के निचले सदन . प्रतिनिधिसभा की एक समिति की 2004 की एक रिपोर्ट से यह उद्धरण किया है.

माकपा के मुखपत्र पीपुल्स डेमोक्रेसी के इसी सप्ताहांत प्रकाश्य संपादकीय में पार्टी ने एक बार फिर केन्द्र से यह फैसला वापस लेने की पुरजोर मांग करते हुए इस फैसले के फायदे गिनाने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कडी आलोचना की है और कहा है कि वालमार्ट.करेफोर तथा टेस्को जैसी विशाल सुपरमार्केट श्रृंखला के भारत में प्रवेश से न रोजगार के अवसर बढेंगें न उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत घटेगी, न किसानों को अपनी उपज का बेहतर लाभकारी मूल्य अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी का मुनाफा अधिकतम स्तर तक ले जाने के इरादे से और इंडोनेशिया की राजधानी बाली में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात के दौरान उनसे हुए किसी वायदे के प्रतिपूर्ति के लिए उठाया गया कदम बताते हुए कहा गया है कि यह प्रतिदिन 20 रूपये से भी कम पर जीवन चला रही देश की 80 करोड जनता की मुश्किलें ही बढायेगा.

एफडीआई के सरकार के फैसले के पक्ष में इसी सप्ताह युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय सम्मेलन में पेश प्रधानमंत्री की दलीलों पर संपादकीय में याद दिलाया गया कि बिजली उत्पादन के क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कंपनी एनरॉन को प्रवेश की अनुमति देते हुए देश में उर्जा सुरक्षा के एक नये युग की शुरूआत का ऐसा ही सब्जबाग दिखाया गया था और सभी यह हकीकत जानते हैं कि किसानों को अहर्निश बिजली मिलने का सपना चूर करते हुए एनरॉन किस तरह देश छोड गया.

बहुब्रांड खुदरा व्यापार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश से "कीमतें कम होने तथा रोजगार बढने के सुनियोजित दुष्प्रचार" के खिलाफ अमेरिकी कांग्रेस की समिति की रिपोर्ट के उदहारण देने के अलावा माकपा ने खाद्य मुद्रास्फीति पर उसके असर . रोजगार के अवसरों पर इसके वास्तविक असर उत्पादकों को बेहतर लाभकारी मूल्य मिलने जैसे मुद्दों पर विभिन्न देशों के अनुभवों के भी हवाले दिये हैं.
खाद्य मुद्रास्फीति पर एफडीआई संचालित सुपर मार्किट के असर के बारे में मेक्सिको, निकारागुआ, अर्जेन्टीन जैसे लातिन अमेरिकी देशों अफ्रीका मे केन्या तथा मेडागास्कर, वियतनाम तथा थाईलैंड के अनुभवों पर विभिन्न अध्ययनों के हवाले से माकपा ने कहा है कि इन देशों में सुपर मार्किटों में खाद्य-पदार्थों एवं साग- सब्जियों के भाव पारम्परिक बाजारों में उनकी दरों से अधिक पाये गए.
वाल्मार्ट कैदेफोर तथा टेस्कों जैसे बहुराष्ट्रीय सुपर मार्के ट की श्रृंखला से रोजगार के अवसर बढने पर सरकारी दलीलों को खारिज करते हुए पीपुल्स डेमोक्रेसी के संपादकीय में कहा गया है कि वियतनाम में रेहडी .पटरी की एक खुदरा दुकान में औसतन पारंपरिक खुदरा व्यापारी के यहां दस तथा एक छोटी खुदरा दुकान में आठ लोगों को रोजगार प्राप्त था् जबकि समान मात्र में उत्पादों की बिक्री आदि के लिए सुपरमार्किटों को केवल चार कर्मचारियों की जरूरत पडती है. उदाहरण के तौर पर इन सुपर मार्केटों को एक टन टमाटर के भंडारण, बिक्री के लिए केवल 1.2 लोगो की दरकार थी, जबकि पारम्परिक बाजार को इसके लिए 2.9 लोग रखना पडता था.
इन सुपर मार्के टों से उत्पादक को बेहतर मूल्य मिलने के दूष्प्रचार के खिलाफ पार्टी ने कहा कि घाना में साधारण मिल्क चाकलेट के मूल्य में कोकोआ पैदा कर रहे किसान का हिस्सा केवल 3.9 प्रतिशत होता है और सुपर मार्केट का मुनाफा 34 प्रतिशत. इसी तरह केला पैदा कर रहे किसान को इसकी अंतिम बिक्री मूल्य का केवल पांच प्रतिशत तथा सुपर मार्केट का लाभ 34 प्रतिशत होता है और बहुराष्ट्रीय खुदरा व्यापारी को जींस की एक जोडी के मूल्य का 54 प्रतिशत हिस्सा मिलता है तथा उत्पादक को केवल 12 प्रतिशत.
एफडीआई का फैसला राज्य सरकारों की सहमति की स्थिति में ही उनके क्षेत्रों में लागू होने के मनमोहन सिंह सरकार के तर्क पर माकपा ने पूछा है कि क्या फिर यह फै सला केवल अंडमान निकोबार तथा लक्षद्वीप जैसे केन्द्रशासित क्षेत्रों में ही लागू होगा. पार्टी ने इस फै सले के रहते संसद इस पर चर्चा को बेमानी बताते हुए कहा कि सार्थक चर्चा के लिए जरूरी है कि सरकार यह फैसला स्थागित करे और भरोसा दे कि चर्चा के बाद सदन की भावना के अनुरूप ही एफडीआई की अनुमति देने या नहीं देने का फै सला करेगी.

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