बुधवार, 11 मई 2016

हवा न हो जाए हवाई निरीक्षण


मतदाताओं के एक-एक वोट हासिल करने की कड़ी मशक्कत के बाद किसी राजनीतिक दल को शासन-प्रशासन चलाने की इजाजत इस उम्मीद के साथ मिलती है कि वह जनता के जीवन को खुशहाल बनाये और प्रशासन को जनोन्मुखी और दुरुस्त. छत्तीसगढ़ के मुखिया का दायित्व तीसरी बार संभाल रहे डॉ. रमन सिंह अचानक एक स्कूल पहुंचे और सच्चाईयों से रूबरू हुए. राज्य के मुखिया की एेसी कार्रवाई प्रशासनिक चुस्ती के लिए ही जरूरी नहीं है बल्कि जनता की जरूरतों का एहसास भी जनता के बीच जाने पर होता है. दुर्भाग्य से सत्ता की राजनीति सत्ताधीशों को जनता से दूर ही कर रही है. कभी सुरक्षा, कभी व्यस्तता या कभी अरुचि के कारण. हमेशा इस बात को जेहन रखना जरुरी है कि अंतत: अंतिम निर्णय जनता के हाथ में ही होता है. राजनेताओं की सादगी और जनता से तादात्म्य अब विलुप्त होती चीज है. 
पार्रिकर या माणिक सरकार जैसे उदाहरण कितने हैं. डॉ. रमन सिंह ग्राम सुराज अभियान के नाम पर निकलते हैं लेकिन लगभग सभी को मालूम होता है कि उस पखवाड़े में किसे क्या करना है! कार्रवाई के नाम पर कुछ छोटे-मोटे अफसर कर्मचारी ही निपट जाते हैं. कार्रवाई हो ही यह जरूरी नहीं है लेकिन जरूरी यह है कि सरकार और उसकी नीतियां-कार्यक्रम जनता तक पहुंचे. जरूरी यह है कि जनता की आवाज, उसके दु:ख दर्द सरकार तक पहुंचे. सरकार की तमाम योजनाओं को जनता तक पहुंचाने वाला तंत्र तो इस मामले में अत्यंत नकारा साबित हुआ है. कहीं भूख से मौत हो जाती है, कहीं किसान आत्महत्या कर रहा है लेकिन एेसे तमाम जरूरी सवालों पर इस राज्य का तंत्र तभी हरकत में आता दिखता है जब कम से कम मुख्यमंत्री उसका संज्ञान लेते हैं. 
प्रशासनिक विकेंद्रीकरण दरअसल व्यावहारिक रूप से अब भी अपनी भावनाओं के अनुकूल जनता तक नहीं पहुचा है. इस राज्य में अफसर ही नहीं मंत्री भी जनता के दुखों से बेपरवाह ही नजर आते हैं. बहुत हो गया तो अपने चुनाव क्षेत्र के कुछ लोगों से मिलकर अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री मान लेते हैं. अनेक मंत्रियों के बंगलों में आम आदमी का फटकना भी मुश्किल है लेकिन यहाँ दलाल किस्म के लोग बेधडक़ आते-जाते नजर आते हैं. इस माहौल में डॉ. रमन सिंह का एेसा औचक निरीक्षण सकारात्मक तो है, बस सवाल सिर्फ यही है कि कहीं यह श्रृंगारिक निरीक्षण बस ना रह जाए! मुख्यमंत्री अगर अपनी व्यस्तता से समय निकाल कर समय-समय पर इस तरह का औचक निरीक्षण करें तो उन्हें पता लगेगा कि मंत्रालय की बैठकों में अफसरों के प्रेसेंटेशन और जमीनी हकीकत में फासला कितना है.
 महासमुंद के बिराजपाली में ही जब मुख्यमंत्री भोजन के लिए  जमीन एक फटे हुए बोरे पर बैठे तब पता लगा कि सर्वशिक्षा अभियान में पैसा नहीं था इसलिए टाट पट्टी की खरीदी नहीं हुई थी. यह उस राज्य का हाल था जहाँ खुद मुख्यमंत्री लगातार शिक्षा की गुणवत्ता की बात कर रहे हैं और इसीलिए उन्होंने एक ग्रामीण स्कूल का औचक निरीक्षण किया भी. मुख्यमंत्री एेसे दौरे पर समय समय पर निकलेंगे तो राज्य की नब्ज को और बेहतर तरीके से पकड़ सकेंगे. 

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